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Our Journey

त्रिकोण

पौधों पर कीट और रोगों के हमले के लिए तीन मुख्य कारकों की आवश्यकता होती है, जिन्हें एक त्रिभुज (त्रिकोण) के माध्यम से समझाया जाता है।

🔺 त्रिकोण का निचला भाग - फसल (पौधा)

यह भाग फसल को दर्शाता है। यदि फसल ही नहीं होगी, तो कीट या रोग को पनपने के लिए कोई आधार नहीं मिलेगा, जिससे उनका प्रसार नहीं हो पाएगा।

🔺 बायां भाग - वातावरणीय कारक

इस भाग में तापमान, नमी, वर्षा, हवा की गति आदि जैसे मौसम संबंधी तत्व आते हैं। यदि ये कारक कीटों और रोगों के लिए अनुकूल होंगे, तो वे तेजी से फैलेंगे। वहीं, यदि वातावरण प्रतिकूल होगा, तो उनका प्रभाव कम हो जाएगा या वे पनप ही नहीं पाएंगे।

🔺 दायां भाग - रोग और कीटों की उपस्थिति (इनोक्युलम)

इस भाग में रोग पैदा करने वाले जीवाणु, फफूंद, विषाणु, उनके सुप्त बीजाणु, कीटों के अंडे, कोष, वयस्क कीट और पतंगे शामिल होते हैं। यदि ये कारक मौजूद नहीं होंगे, तो रोग और कीटों का हमला संभव नहीं होगा।

जिस प्रकार किसी त्रिकोण की तीनों भुजाएँ जुड़ती हैं, तभी वह पूरा होता है, उसी प्रकार किसी फसल पर रोग या कीट के प्रकोप के लिए इन तीनों कारकों का एक साथ होना आवश्यक है।

यदि फसल नहीं होगी – रोग और कीट नहीं आएंगे।

यदि वातावरण अनुकूल नहीं होगा – रोग और कीट नहीं पनपेंगे।

यदि रोग या कीटों का इनोक्युलम नहीं होगा – संक्रमण नहीं फैलेगा।

इसलिए, फसल संरक्षण के लिए इन तीनों घटकों को नियंत्रित करना आवश्यक है। सही उपायों को अपनाकर रोग और कीटों के प्रकोप को कम किया जा सकता है और बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 🌱

Our Mission

हवामान

हवामान, फसलों, कीटों और रोगों पर सीधा असर डालता है। यदि हमें मौसम से जुड़ी सही जानकारी पहले से मिल जाए, तो हम यह समझ सकते हैं कि मौजूदा और आने वाले दिनों में मौसम फसल, कीट और रोगों के लिए अनुकूल रहेगा या प्रतिकूल। इसी के आधार पर हम पहले से ही उचित उपाय कर सकते हैं ताकि कीट और रोगों के प्रकोप को रोका जा सके या कम किया जा सके।

यदि हम कीट-रोग त्रिकोण के अंतर्गत मौसम के प्रभाव को समझें, तो हम पहले से ही यह अनुमान लगा सकते हैं कि किसी विशेष परिस्थिति में किस कीट या रोग का खतरा अधिक है। इससे हमें पहले से ही निवारक उपाय करने का अवसर मिलता है, जिससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, अगर रसचूसक कीटों के लिए अनुकूल मौसम बन रहा है और फसल की बुवाई हो चुकी है, तो हम पहले से ही पीले और नीले चिपचिपे सापळे (स्टिकी ट्रैप) लगाकर उनका नियंत्रण कर सकते हैं। साथ ही, जैविक या रासायनिक उपायों का उपयोग कर सकते हैं ताकि उनका प्रकोप बढ़ने से पहले ही रोका जा सके।

इसी तरह, अगर किसी रोग के लिए अनुकूल मौसम बनने की संभावना हो, तो हम पहले से ही सुरक्षात्मक फफूंदनाशकों (रासायनिक या जैविक) का छिड़काव कर सकते हैं।

इसके अलावा, फसल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए और उन तत्वों के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए, जो फसल की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकते हैं।

इस प्रकार, मौसम की सही जानकारी और समझ के आधार पर हम फसलों को कीट और रोगों से बचाने के लिए समय पर प्रभावी कदम उठा सकते हैं।

हवामान को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?

Our Mission

हवामान को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण घटक हैं:

समुद्र तल से ऊंचाई: जितनी अधिक ऊंचाई होगी, तापमान उतना ही कम होगा।

डोंगर (पहाड़) और उनकी उपस्थिति: आसपास पहाड़ हैं या नहीं, इससे हवामान पर असर पड़ता है।

जल स्रोतों की उपस्थिति: नदियाँ, तालाब, झीलें, नहरें आदि की उपस्थिति से आर्द्रता प्रभावित होती है।

वनस्पतियों और फसलों की मौजूदगी: जंगल और फसलें जल वाष्प छोड़ती हैं, जिससे नमी बढ़ती है।

अब मान लीजिए कि किसी 10-20 किमी के इलाके में जमीन की ऊंचाई समुद्र तल से समान है, वहाँ न कोई पहाड़ है, न कोई जल स्रोत, और न ही घना जंगल है। ऐसी स्थिति में उस पूरे क्षेत्र में तापमान और आर्द्रता में बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ेगा।

लेकिन अगर कोई इलाका पहाड़ों के पास है, तो स्थिति बदल जाती है। उदाहरण के लिए, किसी पहाड़ के तलहटी और शिखर के तापमान में अंतर होता है। यह अंतर आँखों से हमेशा दिखाई नहीं देता। जैसे, अगर आप मालेगांव से नासिक की ओर यात्रा करते हैं, तो आप धीरे-धीरे ऊँचाई पर चढ़ रहे होते हैं। पहली नज़र में यह उतना साफ़ नहीं दिखता, लेकिन वास्तव में, चांदवड़ से लेकर नासिक तक का इलाका पहाड़ी क्षेत्र में आता है।

इसीलिए, किसी स्थान की ऊँचाई को सही से मापने के लिए वैज्ञानिक रूप से "समुद्र तल से ऊँचाई" को मानक माना जाता है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किसी स्थान का तापमान, आर्द्रता और मौसम कैसा रहेगा।

Our Mission

रोग और कीटों का प्रभाव: मौसम की भूमिका

रोग और कीटों के फैलने और बढ़ने के लिए एक निश्चित तापमान और आर्द्रता की जरूरत होती है। अगर तापमान और नमी उस सीमा से अधिक या कम हो जाए, तो उनकी वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मौसम थोड़ा बदलते ही रोग या कीट तुरंत मर जाएंगे या तेजी से बढ़ने लगेंगे।

चूंकि रोग और कीट भी जीवित प्राणी हैं, वे भी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वातावरण के बदलावों का सामना करते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में उनकी काफी ऊर्जा खर्च होती है, जिससे उनकी हानिकारक क्षमता भी प्रभावित होती है।

उदाहरण के लिए, अगर किसी रोग के बढ़ने के लिए 10 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान और 75-90% आर्द्रता की जरूरत होती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि यह केवल इन्हीं स्थितियों में पनपेगा। अगर खेत में फसल और रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव (इनोक्युलम) पहले से मौजूद हैं, तो यह रोग 11 से 24 डिग्री तक के अलग-अलग तापमानों पर भी उभर सकता है।

लेकिन अगर तापमान 8 डिग्री या 30 डिग्री तक चला जाए, तो भी रोग पूरी तरह से खत्म नहीं होगा। ऐसे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव अपनी संख्या बनाए रखने और अधिक समय तक जीवित रहने की कोशिश करेंगे।

रोग नियंत्रण में मौसम की अहमियत

अगर हमें यह सही समय पर पता चल जाए कि मौसम रोग के लिए पूरी तरह से अनुकूल नहीं है, तो उसे नियंत्रित करना आसान हो जाता है।

अगर किसी रोग को पनपने के लिए पूरी तरह से अनुकूल परिस्थितियाँ मिल जाएं, तो यह बहुत तेजी से फैलता है, जिससे इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। रोग जितनी तेज़ी से बढ़ेगा, उसके नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदम उतने ही मुश्किल हो जाएंगे।

रोग के लक्षण फसल पर तुरंत नहीं दिखते। रोग की शुरुआत के बाद, लक्षणों के दिखने में 5 से 45 दिन तक लग सकते हैं, जो रोग के प्रकार पर निर्भर करता है।

अगर किसी खेत में बार-बार एक ही फसल लगाई जा रही है और पहले भी वहाँ उस रोग के लक्षण देखे गए हैं, तो नए सीजन में भी उस रोग के आने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में, यदि हमें मौसम के आधार पर रोग की शुरुआत का संकेत पहले से मिल जाए, तो समय पर निवारक उपाय अपनाकर फसल को बचाया जा सकता है।

फसल और कीटों पर मौसम का प्रभाव

जिस तरह फसलें और कीट अनुकूल मौसम में तेजी से बढ़ते हैं, उसी तरह प्रतिकूल मौसम में उन्हें जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जब कोई फसल या कीट प्रतिकूल पर्यावरण से लड़ता है, तो उसकी बहुत अधिक ऊर्जा इसी संघर्ष में खर्च हो जाती है। यही कारण है कि प्रतिकूल मौसम का सही अंदाजा लगाकर पहले से ही रणनीति बनाना बहुत जरूरी है।

क्रॉपस्पाय: किसानों के लिए एक भरोसेमंद साथी

Frequently Asked Questions

जो किसान वेदर स्टेशन लगाने में रुचि नहीं रखते या जिनके पास छोटा खेत है, उनके लिए क्रॉपस्पाय एक बेहतरीन समाधान है। यह सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके मौसम से जुड़ी जानकारी प्रदान करता है और उसे पहले से सिखाई गई कंप्यूटर मॉडलिंग से जोड़कर फसलों पर होने वाले रोग और कीटों के बारे में पाँच अलग-अलग स्तरों पर जानकारी देता है।

क्रॉपस्पाय अमेरिका की VisualCrossing संस्था के साथ मिलकर काम करता है, जो 50 से 70 किलोमीटर के दायरे में मौसम की सटीक जानकारी एकत्रित करता है। यह जानकारी सैटेलाइट और स्थानीय वेदर स्टेशनों से प्राप्त डेटा के आधार पर तैयार की जाती है। जिन इलाकों में भौगोलिक बदलाव कम होते हैं, वहाँ यह जानकारी काफी सटीक साबित होती है।

क्रॉपस्पाय छोटे और मध्यम किसानों को करीब 35 फसलों पर लगने वाले रोग और कीटों की भविष्यवाणी देकर पहले से सतर्क करने का काम करता है। • इससे किसान खेत में निरीक्षण करते समय पहले से पता कर सकते हैं कि किस बीमारी या कीट का खतरा हो सकता है और उसके संकेतों को अधिक बारीकी से देख सकते हैं। • अगर किसी खेत में बार-बार एक ही फसल या उसी वर्ग की दूसरी फसल उगाई जा रही है, तो रोग और कीटों के आने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे में, क्रॉपस्पाय के माध्यम से समय रहते रोकथाम के उपाय किए जा सकते हैं। क्या क्रॉपस्पाय की जानकारी सटीक होती है? क्रॉपस्पाय को किसानों और खेती को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है। चूंकि रोग, कीट और फसल तीनों ही जीवित होते हैं, उनका स्वाभाविक गुण होता है कि वे बदलते मौसम में खुद को बचाने और अपनी संख्या बढ़ाने की कोशिश करते हैं। • सिर्फ तापमान में बदलाव होने से कीट या रोग खत्म नहीं होते। • क्रॉपस्पाय मौसम और परिस्थितियों के अनुसार धोखे की संभावना को कम करता है और सटीक स्तर पर अलर्ट देता है। • अगर सभी मौसमी कारक रोग और कीटों के लिए अनुकूल हैं, तो यह उच्च जोखिम का संकेत देता है। • अगर स्थितियाँ आंशिक रूप से अनुकूल हैं, तो यह मध्यम या कम जोखिम का अलर्ट देता है। • कम जोखिम का मतलब यह होता है कि किसान को खेत में जाकर यह देखना चाहिए कि कोई शुरुआती लक्षण हैं या नहीं। • अगर पिछले वर्षों में उसी खेत में रोग या कीट आ चुके हैं, तो किसान रोकथाम के उपायों पर ध्यान दे सकता है।

बिल्कुल नहीं! क्रॉपस्पाय केवल एक सहायक टूल है, कोई अंतिम निर्णय लेने वाला साधन नहीं। • यह आपको मौसम और रोग/कीटों की संभावनाओं की जानकारी देता है, लेकिन फसल पर बिना निरीक्षण किए कोई भी छिड़काव नहीं करना चाहिए। • खेत में नियमित निरीक्षण जरूरी है, ताकि सही समय पर आवश्यक कदम उठाए जा सकें।

खेती में काम की अधिकता के कारण कई बार यह याद नहीं रहता कि खेत में किस चीज़ का निरीक्षण करना है। क्रॉपस्पाय इसी जगह आपकी मदद करता है। • यह आपको पहले से चेतावनी देता है कि किन कीटों या रोगों का खतरा हो सकता है, जिससे आप निरीक्षण में कोई चूक न करें। • खेत में नजर रखने और सही समय पर निर्णय लेने में यह एक भरोसेमंद सहायक बन सकता है।

✅ क्रॉपस्पाय की वेबसाइट और एंड्रॉइड ऐप पर यह जानकारी उपलब्ध है। ✅ साप्ताहिक 2 बार नोटिफिकेशन भेजे जाते हैं, ताकि किसान समय पर जानकारी देख सकें। ✅ ईमेल के जरिए भी चेतावनी और अपडेट मिलते हैं।

🔹 रोग और कीटों के लक्षणों की पहचान के लिए फोटो गैलरी उपलब्ध है। 🔹 प्रत्येक रोग/कीट पर क्लिक करने पर अनुशंसित कीटनाशकों और फफूंदनाशकों की सूची (CIB अनुमोदित) मिलती है। 🔹 डिजिटल डायरी के रूप में किसान अपने कृषि कार्यों का रिकॉर्ड रख सकते हैं।

वर्तमान में 35 फसलों के लिए 300 से अधिक कीट और रोगों की जानकारी उपलब्ध है। साथ ही, किसान समुदाय की जरूरतों के अनुसार इस डेटा को समय-समय पर अपडेट किया जाता है। क्रॉपस्पाय किसानों को सटीक और समय पर जानकारी प्रदान करने वाला एक उपयोगी साधन है, जो उन्हें फसल में संभावित रोग और कीट के खतरों के प्रति सतर्क करने में मदद करता है। यह निर्णय लेने में सहायक बनता है, लेकिन बिना निरीक्षण के सीधे फसल सुरक्षा उपाय करने की अनुशंसा नहीं करता।

अगर आपको क्रॉपस्पाय की जानकारी पसंद आई है और आप इस सेवा को शुरू करना चाहते हैं, तो 31 मार्च 2025 तक विशेष छूट का लाभ उठाकर 1 वर्ष की सदस्यता शुल्क केवल 375 रुपये (31 मार्च 2025 के बाद 1250 रुपये प्रति वर्ष) जमा करें और तुरंत अपनी सेवा शुरू करें। नीचे दिए गए व्हाट्सएप बटन पर क्लिक करें, आपको एक क्यूआर कोड मिलेगा, जिस पर सुरक्षित भुगतान करें। या फिर अपने नजदीकी डीलर से कार्ड प्राप्त करें, जिस पर आपका विशेष सीरियल नंबर होगा। उसे दर्ज करके रजिस्टर करें (Get Started बटन पर क्लिक करके फॉर्म भरें) और सेवा तुरंत शुरू करें।

"अनिश्चितता के अंधकार में अनुमान से चलने के बजाय, सही जानकारी के प्रकाश में सही कदम उठाएँ!"

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